Jokes of the day:-
एक खूबसूरत लडकी बस स्टैंड पर
खडी थी | एक नौजवान बोला-
चांद तो रात में निकलता हैं , आज दिन में कैसे निकल
आया ?
लडकी बोली - अरे उल्लू तो रात
को बोलता था , आज दिन में कैसे बोल रहा हैं |
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Thursday 22 January 2015
Jokes
Jobs
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Health tips เคฐाเค เคे เคเค เคเคทเคงीเคฏ
Benifits of raai राई के कई औषधीय गुण है और इसी कारण से इसे कई
रोगों को ठीक करने में प्रयोग किया जाता है । कुछ
रोगों पर इसका प्रभाव नीचे दिया जा रहा है -
हृदय की शिथिलता- घबराहत, व्याकुल हृदय में कम्पन
अथवा बेदना की स्थिति में हाथ व पैरों पर राई
को मलें। ऐसा करने से रक्त परिभ्रमण की गति तीव्र
हो जायेगी हृदय की गति मे उत्तेजना आ जायेगी और
मानसिक उत्साह भी बढ़ेगा।
हिचकी आना- 10 ग्राम राई पाव भर जल में उबालें
फिर उसे छान ले एवं उसे गुनगुना रहने पर जल
को पिलायें।
बवासीर अर्श- अर्श रोग में कफ प्रधान मस्से
हों अर्थात खुजली चलती हो देखने में मोटे हो और
स्पर्श करने पर दुख न होकर अच्छा प्रतीत
होता हो तो ऐसे मस्सो पर राई का तेल लगाते रहने से
मस्से मुरझाने ल्रगते है।
गंजापन- राई के हिम या फाट से सिर धोते रहने से
फिर से बाल उगने आरम्भ हो जाते है।
मासिक धर्म विकार- मासिक स्त्राव कम होने
की स्थिति में टब में भरे गुनगुने गरम जल में पिसी राई
मिलाकर रोगिणी को एक घन्टे कमर तक डुबोकर उस
टब में बैठाकर हिप बाथ कराये। ऐसा करने से आवश्यक
परिमाण में स्त्राव बिना कष्ट के हो जायेगा।
गर्भाशय वेदना- किसी कारण से कष्ट शूल या दर्द
प्रतीत हो रहा हो तो कमर या नाभि के निचें राई
की पुल्टिस का प्रयोग बार-बार करना चाहिए।
सफेद कोढ़ (श्वेत कुष्ठ)- पिसा हुआ राई का आटा 8
गुना गाय के पुराने घी में मिलाकर चकत्ते के उपर कुछ
दिनो तक लेप करने से उस स्थान का रक्त तीव्रता से
घूमने लगता है। जिससे वे चकत्ते मिटने लगते है।
इसी प्रकार दाद पामा आदि पर भी लगाने से लाभ
होता है।
कांच या कांटा लगना- राई को शहद में मिलाकर
काच काटा या अन्य किसी धातु कण के लगे स्थान
पर लेप करने से वह वह उपर की ओर आ जाता है। और
आसानी से बाहर खीचा जा सकता है।
अंजनी- राई के चूर्ण में घी मिलाकर लगाने से नेत्र के
पलको की फुंसी ठीक हो जाती है।
स्वर बंधता- हिस्टीरिया की बीमारी में बोलने
की शक्ति नष्ट हो गयी हो तो कमर या नाभि के
नीचे राई की पुल्टिस का प्रयोग बार बार
करना चाहिए।
गर्भ में मरे हुए शिशु को बाहर निकालने के लिए-
ऐसी गर्भवती महिला को 3-4 ग्राम राई में
थोंड़ी सी पिसी हुई हींग मिलाकर शराब
या काजी में मिलाकर पिला देने से शिशु बाहर
निकल आयेगा।
अफरा- राई 2 या 3 ग्राम शक्कर के साथ खिलाकर
उपर से चूना मिला पानी पिलाकर और साथ ही उदर
पर राई का तेल लगा देने से शीघ्र लाभ हो जाता है।
विष पान- किसी भी प्रकार से शरीर में विष प्रवेश
कर जाये और वमन कराकर विष का प्रभाव कम
करना हो तो राई का बारीक पिसा हुआ चूर्ण
पानी के साथ देना चाहिए।
गठिया- राई को पानी में पीसकर गठिया की सूजन
पर लगा देने से सूजन समाप्त हो जाती हैं। और
गठिया के दर्द में आराम मिलता है।
हैजा- रोगी व्यक्ति की अत्यधिक वमन दस्त
या शिथिलता की स्थिति हो तो राई का लेप
करना चाहिए। चाहे वे लक्षण हैजे के हो या वैसे
ही हो।
अजीर्ण- लगभग 5 ग्राम राई पीस लें। फिर उसे जल में
घोल लें। इसे पीने से लजीर्ण में लाभ होता है।
मिरगी- राई को पिसकर सूघने से मिरगी जन्य
मूच्र्छा समाप्त हो जाती है।
जुकाम- राई में शुद्ध शहद मिलाकर सूघने व खाने से
जुकाम समाप्त हो जाता है।
कफ ज्वर- जिहृवा पर सफेद मैल की परते जम जाने
प्यास व भूख के मंद पड़कर ज्वर आने की स्थिति मे राई
के 4-5 ग्राम आटे को शहद में सुबह लेते रहने से कफ के
कारण उत्पन्न ज्वर समाप्त हो जाता है।
घाव में कीड़े पड़ना- यदि घाव मवाद के कारण सड़
गया हो तो उसमें कीड़े पड जाते है। ऐसी दशा में कीड़े
निकालकर घी शहद मिली राई का चूर्ण घाव में भर
दे। कीड़े मरकर घाव ठीक हो जायेगा।
दन्त शूल- राई को किंचित् गर्म जल में मिलाकर कुल्ले
करने से आराम हो जाता है।
रसौली, अबुर्द या गांठ- किसी कारण
रसौली आदि बढ़ने लगे तो कालीमिर्च व राई
मिलाकर पीस लें। इस योग को घी में मिलाकर करने से
उसका बढ़ना निश्चित रूप से ठीक हो जाता है।
विसूचिका- यदि रोग प्रारम्भ होकर
अपनी पहेली ही अवस्था में से ही गुजर
रहा हो तो राई मीठे के साथ सेवन करना लाभप्रद
रहता है।
उदर शूल व वमन- राई का लेप करने से तुरन्त लाभ
होता है।
उदर कृमि- पेट में कृमि अथवा अन्श्रदा कृमि पड़ जाने
पर थोड़ा सा राई का आटा गोमूत्र के साथ लेने से
कीड़े समाप्त हो जाते है। और भविष्य में उत्पन्न
नही होते।
Vacancy for COAST GUARD (MINISTRY OF DEFENCE)
Post-Navik
(GD) Quali-10+2 with 60% (Math+Physics) Age
18-22 last 10/2/2015 click here for detail..
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